बिहार में आखिर क्यों हो रहा BPSC नॉर्मलाइजेशन पर बवाल….नार्मलाईजेशन…?

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बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की 70वीं परीक्षा 13 दिसंबर को राज्य के 925 केंद्रों पर आयोजित की जाएगी। इस परीक्षा में 4.8 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है। हालांकि, परीक्षा से पहले नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया लागू करने की चर्चा ने छात्रों में गुस्सा भर दिया। पटना की सड़कों पर शुक्रवार को छात्रों का भारी विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। इस दौरान, हंगामा कर रहे अभ्यर्थियों पर पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।

क्या है नॉर्मलाइजेशन?

नॉर्मलाइजेशन एक प्रक्रिया है जिसके तहत एक से अधिक पालियों में आयोजित परीक्षाओं के अंकों को सामान्य बनाया जाता है। जब अलग-अलग पालियों में प्रश्नपत्र का कठिनाई स्तर अलग-अलग होता है, तो नॉर्मलाइजेशन के माध्यम से अंकों को संतुलित किया जाता है।

उदाहरण के लिए, अगर पहली पाली में प्रश्नपत्र अपेक्षाकृत आसान है और औसत स्कोर 140 है, जबकि दूसरी पाली में कठिन प्रश्नपत्र के कारण औसत स्कोर 120 है, तो दोनों का औसत निकालकर 130 कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया सभी अभ्यर्थियों के अंकों को एक समान मापदंड पर लाने का प्रयास करती है।

अभ्यर्थियों का विरोध क्यों?

छात्रों का तर्क है कि नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया सिविल सेवा जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उचित नहीं है। इस प्रकार की परीक्षाओं में एक अंक भी चयन और असफलता के बीच अंतर पैदा कर सकता है। औसत अंक की गणना से कई मेधावी अभ्यर्थियों का नुकसान हो सकता है।

  • समान अवसर की मांग: अभ्यर्थी चाहते हैं कि परीक्षा केवल एक ही पाली में हो ताकि सभी को समान अवसर मिले।
  • सटीक मूल्यांकन: छात्रों का कहना है कि कठिन और आसान प्रश्नपत्रों का औसत निकालना योग्यता के आधार पर चयन को प्रभावित करता है।
  • भविष्य पर असर: नॉर्मलाइजेशन के कारण कई योग्य उम्मीदवार अपने करियर के महत्वपूर्ण अवसर से वंचित हो सकते हैं।

  • र्मलाइजेशन के खिलाफ तर्क
  • छात्रों का कहना है कि औसत अंक पद्धति उन परीक्षाओं के लिए उपयुक्त हो सकती है जहां अंकों का महत्व सीमित होता है, लेकिन सिविल सेवा जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में यह प्रक्रिया न्यायसंगत नहीं है। उनका कहना है कि नॉर्मलाइजेशन से अंकों का वास्तविक मूल्यांकन संभव नहीं हो पाता और परिणाम में असमानता आ सकती है।
  • 70वीं बीपीएससी परीक्षा को लेकर नॉर्मलाइजेशन की चर्चा ने छात्रों के बीच व्यापक असंतोष पैदा किया है। हालांकि आयोग ने इसे लागू न करने की घोषणा की है, फिर भी अभ्यर्थी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भविष्य में भी इस तरह की प्रक्रिया से बचा जाए। परीक्षा प्रणाली को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की यह मांग छात्रों के भविष्य के प्रति उनकी गंभीरता को दर्शाती है।

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