AIR Tune: क्या आप जानते हैं आकाशवाणी की कालजयी धुन किसने बनाई थी, सुबह इसी धन से होती थी

0
AIR Signature Tune

1938 में खुद अल्बर्ट आइंस्टीन ने वाल्टर कॉफमैन के लिए एक सिफारिश लिखी थी।

AIR Classic Tune: क्या आप जानते हैं आकाशवाणी की कालजयी धुन किसने बनाई थी, सुबह इसी धन से होती थी।

हम आपको बता दें कि वाल्टर कॉफ़मैन संगीतकार और शिक्षक 1907-1984 ने ऑल इंडिया रेडियो के लिए इस सिग्नेचर ट्यून की रचना की जो टीवी के आगमन से पहले भारतीयों की कई पीढ़ियों की जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बनी रही।

Signature Tune कौन थे वाल्टर

आश्चर्यजनक बात ये है कि AIR Classic Tune को हिटलर के आक्रमण के समय एक यहूदी शरणार्थी ने बनाया था। जो कि चेक निवासी थे। वाल्टर कॉफमैन का जन्म 1907 में कार्ल्सबाद में हुआ था, जिसे आज हम कालवी वारी के नाम से जानते हैं।

इस यहूदी के पिता जूलियस कॉफमैन एक यहूदी थे, जबकि उनकी माँ ने यहूदी में धर्म-परिवर्तन किया था। उस समय यहूदियों पर नाज़ियों का राज था और उनसे बचते-बचते ही चेक बॉर्डर पर वाल्टर के पिता की मौत हुई।

साल 1934 में, जब हिटलर ने प्राग पर आक्रमण किया, तब 27 वर्षीय वाल्टर कॉफमैन मुंबई आ गए। वह मजबूरी में एक शरणार्थी के रूप में भारत आये क्योंकि वाल्टर कभी भी भारत में बसना नहीं चाहते थे। पर फिर भी, भारत की सपनों की इस नगरी में उन्होंने 14 साल बिताये थे।

शुरुआती अनुभव अच्छा नहीं रहा

भारत आने के बाद वाल्टर के शुरुआती दिन आसान नहीं थे। वे एक प्रशिक्षित संगीतकार थे और ऐसे इंसान की तलाश में थे, जो उनकी प्रतिभा को पहचान पाए। पर भारतीय संगीत के साथ उनका शुरुआती अनुभव बहुत अच्छा नहीं था। उन्हें यह अपनी समझ के बाहर लगा। लेकिन यहां आने के कुछ महीनों के बाद उन्हें बॉम्बे चेम्मार म्यूजिक सोसाइटी के बारे में पता चला, जो हर गुरुवार को विल्लिंगडन जिमखाना में कार्यक्रम पेश करता था।

यहाँ रहते हुए उन्होंने अपने परिवार को कई पत्र लिखे थे और उनके पत्राचार से पुष्टि हुई कि वे वार्डन रोड (अब भुलाभाई देसाई रोड) के महालक्ष्मी मंदिर के पास एक दो मंजिला घर रीवा हाउस में रहते थे।

पहला रिकॉर्ड समझ के बाहर था

एक साल की अवधि में ही इस सोसाइटी ने 130 से भी ज्यादा कार्यक्रम किये और हर बार इनके दर्शकों की संख्या बढ़ती रही।

ट्रॉल के अनुसार, अपने एक पत्र में वाल्टर ने भारतीय संगीत पर अपनी शुरुआती राय के बारे में भी बेहिचक लिखा था। उन्होंने

भारत का जो पहला टिकार्ड सुना, वो उनके लिए, ” समझ के बाहर था। पर फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी।

वाल्टर ने लिखा, मुझे पता था कि इस संगीत की रचना किसी ने बड़े प्रेम और समझ से की होगी। हम ये कह सकते है कि बहुत से शायद करोड़ो लोग ऐसे हैं जो इस संगीत को पसंद करते हैं, इससे प्यार करते हैं। मैंने ये निष्कर्ष निकाला कि गलती शायद मेरी है। इसे समझने का सही तरीका होगा। उस जगह की यात्रा करना, जहाँ इसका जन्म हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *